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चार दिवारी मेरा घर नहीं



मैं पहाड़ों में रहता हूं। यहां जितनी खूबसूरत मां प्रकृति है, उससे एक आद ज्यादा राज़ और रहस्य, अपने अंदर छिपाए रखती है। वो राज़ जिसे कोई नहीं देखता, अब भला वो राज़ ही कैसा जो पता लग जाए। अजीब बात तो यह है कि जबसे मैं अपने घर में बंद हुआ हूं, मुझे यह पहाड़ और इसके राज़ दिखने लगे हैं।

आज करीब 18 दिन हो गए हैं मुझे मेरे घर में बंद हुए। ज्यादा कुछ करने को नहीं होता तो मैं अक्सर अपने घर की छत पर बैठ जाता हूं। कुछ नहीं करता बस बैठ कर आस-पास देखता हूं। पेड़ों को, पहाड़ों को, दरिया को, मकानों को, वह जो दरिया के ऊपर नया पुल बन रहा है, उसको, कितने सारे डिश लग गए हैं, उनको, कितने सारे पंछी उड़ रहे हैं, उनको।

वैसे यह बात तो है कि यहां अब हर घर में डिश लग गया है, शायद इसलिए इक्का-दुक्का बच्चा ही छत पर खेलते दिखाई देते हैं। वरना बाकी छत्तें तो खाली रहती है।

वैसे ऐसा नहीं है कि सिर्फ बच्चे ही छत पर नहीं आते। विज्ञान ने जितनी तरक्की की है, उतना ही लोगों को सीमित भी किया है।

आजकल मुझे सिर्फ एक इंसान छत पर दिखता है। वो बिल्कुल मेरी तरह है, बस सब देखता है। रोज़ नीले रंग के कुर्ते और सफेद पजामे में, अपनी कुर्सी पर बैठा पहाड़ों को देखता है। ठीक से चला भी नहीं जाता, दाढ़ी लाल हो चली है, पूरे चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई है। फिर भी पहाड़ों को देखता है।

सुना है, उसका एक हाथ बम ब्लास्ट में कट गया था।
सुना है, वो ब्लास्ट पड़ोसी देश के बॉर्डर से लगते गांव में हुआ था।
सुना है, उसके बाद उसके बेटे, बहू और पोती को कुछ लोग ले गए।
सुना है, वहीं पर बैठा देखता रहा जब उन लोगों ने उसकी पोती का जिस्म नोच खाया।
सुना है, वह अमन के लिए यह रास नहीं पहाड़ों में दफनाया आया, की वह लोग कौन थे।
सुना है, उसका गांव दूर उस पहाड़ी के दूसरी तरफ है।

मैं पहाड़ों में रहता हूं और यह जगह उतनी ही रहस्यमय हैं जितनी खूबसूरत।

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