कितने हर्फ लिखे थे तेरे लिए, पर जब भेजने का खयाल आया, सब जला दिए। शायद ऐसा कोई अल्फाज नहीं जो तुझसे खूबसूरत हो, शायद मैं ही कुछ ज्यादा सोचता हूं, सोच कर ही तुझ पर कितने जुमले लिखें, पर जब भेजने की बात आई, सब जला दिए। कितने मोती तराशे कामुस से छांट कर। कितने क़ाफ़िये बनाएं बार-बार मिटा कर। पूरी मजमून लिख दी थी तुझ पर, पर जब भेजने की बारी आई, सब जला दिए। एक सवाल है मेरा जिसका जवाब सिर्फ तू है। एक मुकलमा भी अब क्या क्या पूछेगा। शायद मैं ही एक किताब में बस सकूं, पर जब छपने का सोचा, सब जला दिए। तुझे देखा, तेरे आगे सब अफ़साने बेकार थे। पूरी तैयारी कर ली थी वो बात कहने की जिससे महज कोई पन्ना ना समा पाए। लफ्जों ज़बान से निकल ही गए थे, पर तेरी आंखों की पाक मासूमियत दिख गई, और जितने भी इरादे मेरे, सब जला दिए।
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