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सब जला दिए

कितने हर्फ लिखे थे तेरे लिए, पर जब भेजने का खयाल आया, सब जला दिए। शायद ऐसा कोई अल्फाज नहीं जो तुझसे खूबसूरत हो, शायद मैं ही कुछ ज्यादा सोचता हूं, सोच कर ही तुझ पर कितने जुमले लिखें, पर जब भेजने की बात आई, सब जला दिए। कितने मोती तराशे कामुस से छांट कर। कितने क़ाफ़िये बनाएं बार-बार मिटा कर।  पूरी मजमून लिख दी थी तुझ पर, पर जब भेजने की बारी आई, सब जला दिए। एक सवाल है मेरा जिसका जवाब सिर्फ तू है। एक मुकलमा भी अब क्या क्या पूछेगा। शायद मैं ही एक किताब में बस सकूं, पर जब छपने का सोचा, सब जला दिए। तुझे देखा, तेरे आगे सब अफ़साने बेकार थे। पूरी तैयारी कर ली थी वो बात कहने की जिससे महज कोई पन्ना ना समा पाए। लफ्जों ज़बान से निकल ही गए थे, पर तेरी आंखों की पाक मासूमियत दिख गई, और जितने भी इरादे मेरे, सब जला दिए।

जंग

दो पक्षों में छिड़ी एक जंग, ना कोई मज़हब ना ही रंग, सरहद का दायरा थोड़ा धुंधला था, वजूद कि लड़ाई में अपने ही ना थे अपनों के संघ। पुख्ता तौर पर अभी पता नहीं चल पाया की कोंन किसके इलाके में पहले आया, हालाकि यह वाकया पहली बार नहीं बस इस बार हमारा ध्यान खींच लाया। हमला यहां से हुआ, हमला वहां से हुआ, शोर तो ना जाने कहां-कहां से हुआ, एक-एक इंसान की नींद खराब हुई, "यह चुप हो जाए" सबने मांगी बस यह दुआ। इसी बीच दो बच्चे बस से जा टकराए, दोनों पक्ष लड़ाई छोड़ बच्चो के पास आए, मौका था.. सामने ज़मीन हड़पने का, पर यह कुत्ते है, इन्हे इंसानी फितरत कोन समझाए।

रंग: काला

सियाही काली है जिससे लिखता, काले आस्मा के नीचे तारों को भी दिखता मैं, जाना उनसे आगे चाहूं, उसने ऊपर चाहूं, एक छलांग और पल के लिए उड़ता मैं। आंखे काली है जो मूंदे रखता, काले चश्मे पहने दुनिया भर से चिप्ता मैं, आइने में खुद को देखूं, फिर ना सोचूं, जंग जारी है इस जहां से लड़ता मैं। रात काली है सारी रात जगता, काले धब्बे से नशे में ही लगता मैं, धुआं बन तेरे पास आऊं, तेरे साथ जाऊं, दिन में शोलों सा सुलगता मैं। जुल्फे काली तेरी उन्हें हाथो मे भारू, काले रबर-बैंड ने जकडा उन्हें आजाद करू मैं, फिर फिसले जाए हाथ ज़रा गर्दन पर, ज़रा कमर पर, कस के पकड़ के क्या तुझसे लडू मैं। मिट्टी काली में हाथ डाले रखलू, काले तेरे काजल को खून भरलू मैं, रगों से राख हो के, खाख हो के, थोड़ा सा ही मर लूं मैं।

11-08-2020 (Dedicated to Dr. Rahat Indori)

With his unique approach to see the world and pen it down in words, Dr. Rahat Indori is by far the most loved shayar of this era. He was one such storyteller who could tell so much with his Shayaris and Ghazals. It amazed me that only one or two line can say much.  Past couple of weeks have been really hard for me and all his admirers. It still is hard to digest the death of the master of the carft. I thought to pay my share of tribute to him as well. But it would be foolishness to write something for someone who has written wonders. So, I decided to interpret some of his Shayaris in my words.  And I quickly Googled compilation of his Shayaris and clicked on the very first result. It was " 21 Rahat Indori Shayaris For The Times When You Could Do With Some Inspiration " written by  Shabdita Pareek . And I started doing the work.  P.S. This is my interpretation of his work, how I saw his work, how I understood it. It is not a translation.  Also, I can never in a 1000 times be a

अंत से शुरुआत।

View this post on Instagram A post shared by Deepankur Anand (@ankurtheme) on Dec 30, 2018 at 10:14am PST अंत से शुरुआत, जो अब हम हैं साथ, याद आता है मुझे वो पल, जब पकड़ा था हमने एक दूसरे का हाथ। वो शाम और वो रात, कि जो घंटों तक हमने बात, और फिर सवेरा होने से पहले, दो आंखो कि मुलाकात। आज भी वही जज़्बात, बस बदल गए हैं हालात, अभी कौन सा ही अंत  है, अभी तो हुई हैं शुरुआत।

रास्ता।

                              चलते हैं एक नए रास्ते पर, अंजान राहों में किसी का साथ पहचान लेंगे। मिलते है कल फिर यही, तुझको देख कर खुदको संभाल लेंगे। देखते है एक दूजे को सदियों तक, आंखे बंद कर तेरी तस्वीर बना देंगे। करते है ढेर सारी बातें, खामोशियों से हम खुदको जान लेंगे। रुकते है इक नए ठिकाने पर, अपना घर उस पहाड़ पर बना लेंगे। और फिर चलते है और नये रास्तों पर।

अरसा।

हसरत है उससे फिर से आखरी बार देखने की। कि  अरसा बीत गया उसको अपनी मुस्कान छुपाए, अरसा बीत गया उससे अपनी धड़कन सुनाए, अरसा बीत गया उसको बिन कहे मुझे सताए, अरसा बीत गया उससे बेवजह मुझे चाहहे जाए। हसरत है उससे फिर से आखरी बार देखने की। कि अरसा बीत गया मुझको उसके पास आए, अरसा बीत गया मुझको उसके बालों में हाथ फेराए, अरसा बीत गया मुझे उसको सांस पाए, अरसा बीत गया मुझे कई अश्क बहाए। हरसत है उससे फिर से आखरी बार देखने की, कि कहीं इस हसरत को पूरा करते अरसा ना बीत जाएं। 

चार दिवारी मेरा घर नहीं

मैं पहाड़ों में रहता हूं। यहां जितनी खूबसूरत मां प्रकृति है, उससे एक आद ज्यादा राज़ और रहस्य, अपने अंदर छिपाए रखती है। वो राज़ जिसे कोई नहीं देखता, अब भला वो राज़ ही कैसा जो पता लग जाए। अजीब बात तो यह है कि जबसे मैं अपने घर में बंद हुआ हूं, मुझे यह पहाड़ और इसके राज़ दिखने लगे हैं। आज करीब 18 दिन हो गए हैं मुझे मेरे घर में बंद हुए। ज्यादा कुछ करने को नहीं होता तो मैं अक्सर अपने घर की छत पर बैठ जाता हूं। कुछ नहीं करता बस बैठ कर आस-पास देखता हूं। पेड़ों को, पहाड़ों को, दरिया को, मकानों को, वह जो दरिया के ऊपर नया पुल बन रहा है, उसको, कितने सारे डिश लग गए हैं, उनको, कितने सारे पंछी उड़ रहे हैं, उनको। वैसे यह बात तो है कि यहां अब हर घर में डिश लग गया है, शायद इसलिए इक्का-दुक्का बच्चा ही छत पर खेलते दिखाई देते हैं। वरना बाकी छत्तें तो खाली रहती है। वैसे ऐसा नहीं है कि सिर्फ बच्चे ही छत पर नहीं आते। विज्ञान ने जितनी तरक्की की है, उतना ही लोगों को सीमित भी किया है। आजकल मुझे सिर्फ एक इंसान छत पर दिखता है। वो बिल्कुल मेरी तरह है, बस सब देखता है। रोज़ नीले रंग के कुर्ते और सफेद पजामे

29-04-2020 (Dedicated to Irrfan Khan)

आज ज़िदंगी तुझपे बेरहम हुई हैं, मातम नहीं क्योंकि मुकदर यही हैं। जो आंसू निकले मेरी आंखो से, चलो, गया तू बेहतर कहीं हैं। इश्क़ करता तेरी आंखो से, वो बंद हैं, जो तू छाप छोड़ गया, वो हमेशा यही हैं। हस्ते रहना जहां भी है तू, तेरे जैसा इस ज़मीन को मिला और कोई नहीं है। -29/04/2020 We will miss you. ❤️

गुनगुन का हीरो

में पहाड़ों में रहता हूं। यह जगह कोई कल्पना से कम नहीं। यहां का मौसम मतलब, जन में सामने वाली नदी उबालकर बाप बन जाए और शाम में वहीं सैलाब आ जाए। इन दिनों घर से बाहर जाना वंचित हो गया है। नाभि होता तब भी मुझे बाहर जाने कि ज्यादा आदत नहीं, लेकिन कुछ लोगों को है, जो अपनी जान के लिए अब नजरबंद है। मेरे दोस्त ने बोला कि आप अब्दुल्लाह का दर्द समझ आया। तब मैंने बोला.... खैर छोड़िए सियासत फिर कभी। वैसे हिंदुस्तान में पहली बार होगा कि सभी पार्टी एकजुट होकर कुछ बोली हो। विडंबना है यह काम एक वायरस ही करवा सकता था, वो भी चीन का, जैसा कि लोग और मीडिया कहते हैं।  वायरस ना हुआ साहब क्या हो गया पूरी दुनिया घर पर बंद है।  मैं भी घर पर ही बंद हूं और वह 10 बरस का बच्चा भी जिसने अपनी मां से एक हफ्ता पहले स्कूल ना जाने की जिद की थी। मेरे छत से उसका कमरा दिखता है। अजीब बात यह है सिर्फ मुझे दिखता है। एक तो दिन तो वे बहुत खुश दिखा, चिल्ला चिल्ला कर पूरे घर में भागता। फिर जैसे-जैसे धूप बादल में छुप गई, उसकी उत्सुकता भी छुप गई। ना कोई भाई-ना कोई दोस्त। वैसे भी अब बड़ा हो गया है, मां बाप के साथ थोड़ी ख