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रंग: काला


सियाही काली है जिससे लिखता,

काले आस्मा के नीचे तारों को भी दिखता मैं,

जाना उनसे आगे चाहूं, उसने ऊपर चाहूं,

एक छलांग और पल के लिए उड़ता मैं।


आंखे काली है जो मूंदे रखता,

काले चश्मे पहने दुनिया भर से चिप्ता मैं,

आइने में खुद को देखूं, फिर ना सोचूं,

जंग जारी है इस जहां से लड़ता मैं।


रात काली है सारी रात जगता,

काले धब्बे से नशे में ही लगता मैं,

धुआं बन तेरे पास आऊं, तेरे साथ जाऊं,

दिन में शोलों सा सुलगता मैं।


जुल्फे काली तेरी उन्हें हाथो मे भारू,

काले रबर-बैंड ने जकडा उन्हें आजाद करू मैं,

फिर फिसले जाए हाथ ज़रा गर्दन पर, ज़रा कमर पर,

कस के पकड़ के क्या तुझसे लडू मैं।


मिट्टी काली में हाथ डाले रखलू,

काले तेरे काजल को खून भरलू मैं,

रगों से राख हो के, खाख हो के,

थोड़ा सा ही मर लूं मैं।

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